danish masood
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बीती रात जब सपना टूटा,
जाने किस भय से पीछा छूटा………..
परिश्रम से आई शिथिलता ने
यूँ ही कुछ बुना होगा………..?
सम्भवता नए अंकुर ने जन्म लिया होगा………..?
काश पूर्णस्पष्ट होता ||
चाहे जो भी भाषा थी
पर नई किरण की आशा थी………..
समय करवट ले रहा था,
युवा एक दिशा में बह रहा था………..|
सबकी एक ही परिभाषा थी,
पुष्प की अभिलाषा थी…….. |
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