danish masood
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इतना कठोर निर्दयी न बन
पुष्प सामान कोमल हैं हम
पुण्य कर पापी न बन
टूट के फिर न जुड़ेगे हम
उपवन सा प्यारा सा मन
धरती सा पावन सा मन
इसको दुःख जब होता है
भविष्य मंथन में खोता है
घमण्ड नहीं है गर्व है मुझको
भविष्य तुम्हारा कहलाऊं
प्रत्येक पथ पर स्वर्ण मिले
ऐसा कुछ मैं कर जाऊं
परिश्रम से न पीछे हम
पर शोषण से डरता मन
मानवता का सागर बन
प्यार के भूखे पुष्प है हम
भविष्य खडा बांहें फैलाए
क्यूँ न कुछ बन जाएं हम
इतना कठोर निर्दयी न बन
पुष्प सामान कोमल हैं हम
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